hindisamay head


अ+ अ-

कविता

जीवन राग

गुलाब सिंह


दरवाजे पर गाय रँभाती
घर में रक्षित आग
आँगन में तुलसी का बिरवा
मन में जीवन राग।

छंदों में जीने
के सुख संग
शब्दों की विभुता
दर्द और दुख भी
गाने की
न्यारी उत्सुकता
भाव कल्पना संवेदन
ले भीतर बसा प्रयाग।

चिर प्रवाह के
तट तक मर्म
विचारों की लहरें
रस रसज्ञ भावक
आ कर
दो चार घड़ी ठहरें
टेक अंतराओं में
अंतर्लय का पुष्प पराग।

सघन भीड़ में
बचे ‘आदमी’
उसका आदमकद हो
गए प्यार का
नए गीत में
आगम ही ध्रुवपद हो
धुले मैल निखरे मानवता
चमक उठे बेदाग।
 


End Text   End Text    End Text